NEXT 30 अक्टूबर, 2025 श्रीडूंगरगढ़। गोपाष्टमी के अवसर पर श्रीडूंगरगढ़ कस्बे के मोमासर बास की वृद्ध कुंदनी देवी प्रजापत आज एक अनोखी मिसाल बन गई हैं। करीब दो साल पहले उन्हें एक बीमार और असहाय गाय मिली थी, जो न तो चल-फिर सकती थी और न ही दूध देती थी। लोग कहते रहे- “इसे गोशाला भेज दो”, लेकिन दादी का जवाब हमेशा एक ही रहा कि “मेरे जीते जी कोई मुझे इस गौमाता से अलग नहीं कर सकता।”

तब से आज तक दादी कुंदनी देवी रोज सुबह-शाम उस गौमाता की सेवा में जुटी रहती हैं। समय पर चारा-पानी देना, नहलाना, स्थान बदलना और उपचार करवाना- सब कुछ वे अपने हाथों से करती हैं।
गौसेवक आनंद जोशी बताते हैं कि “ऐसी निस्वार्थ सेवा भावना आज के समय में बहुत दुर्लभ है। अगर हर व्यक्ति दादीजी की तरह किसी एक असहाय गाय की सेवा का संकल्प ले ले, तो कोई गौमाता भूख, प्यास या बीमारी से नहीं मरेगी।”

आज जब लोग स्वार्थ पूरे होने के बाद गौमाता को सड़कों पर छोड़ देते हैं, वहीं कुंदनी देवी जैसी महिलाएँ यह सिखाती हैं कि सेवा का असली अर्थ क्या होता है।















