हमारे देश की न्याय प्रणाली मुख्यतः तीन प्रकार के न्यायालयों में विभाजित है- सिविल न्यायालय, क्रिमिनल (आपराधिक) न्यायालय और राजस्व न्यायालय। इन तीनों न्यायालयों का अपना-अपना अलग क्षेत्राधिकार और विषय वस्तु होती है। कोई भी न्यायालय दूसरे न्यायालय के विषय क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। आज हम सिविल न्यायालय और उसके क्षेत्राधिकार से संबंधित विषय पर चर्चा करेंगे।
सिविल न्यायालय की परिभाषा और उद्देश्य
सिविल न्यायालय वह न्यायालय होता है जो नागरिकों से संबंधित अधिकारों और विवादों का निपटारा करता है। सरल शब्दों में कहें तो जब किसी व्यक्ति के निजी अधिकारों का हनन होता है, या किसी संविदा, संपत्ति या लेनदेन से संबंधित विवाद उत्पन्न होता है, तब उन विवादों का निपटारा सिविल न्यायालय द्वारा किया जाता है।
‘सिविल’ शब्द का अर्थ है- व्यक्ति के रूप में नागरिक से संबंधित दीवानी अधिकार। यह आपराधिक कार्यवाहियों से अलग होता है और इसमें अधिकारों के संरक्षण तथा उनके हनन पर न्यायिक उपचार प्रदान किया जाता है।
सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार (धारा 9, सिविल प्रक्रिया संहिता)
सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure, 1908) की धारा 9 में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि-
“सिविल न्यायालय सभी सिविल प्रकृति के वादों का विचारण करेगा, जब तक कि ऐसे वादों पर विचार करने से उसे विधि द्वारा वर्जित न किया गया हो।”
इसका अर्थ यह है कि सिविल न्यायालय उन सभी विवादों का निपटारा कर सकता है जो सिविल प्रकृति के हैं, अर्थात् जिनका संबंध नागरिक अधिकारों से है।
इन विवादों में निम्नलिखित प्रमुख विषय शामिल होते हैं-
- संपत्ति संबंधी विवाद
- पद या अधिकार से संबंधित विवाद
- धार्मिक कृत्यों या धार्मिक संपत्तियों से जुड़े विवाद
- पारिवारिक संबंधों से संबंधित विवाद
- संविदा (Contract) या लेनदेन से उत्पन्न विवाद
- अन्य सिविल अधिकारों के हनन से संबंधित वाद
सिविल प्रकृति का अर्थ
‘सिविल प्रकृति’ का अर्थ केवल मनुष्य के अधिकारों तक सीमित नहीं है। इसमें धार्मिक संस्थान, देवता, तथा पशु अधिकार भी सम्मिलित हैं।
उदाहरण के लिए-
- यदि किसी मंदिर की संपत्ति पर विवाद उत्पन्न होता है या मंदिर को क्षति पहुँचाई जाती है, तो उस धार्मिक स्थल की ओर से भी सिविल दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।
- इसी प्रकार यदि गोचर भूमि (चरागाह भूमि) में पशुओं के चरने के अधिकार में कोई बाधा उत्पन्न की जाती है, तो न्यायालय की अनुमति से उस अधिकार की रक्षा हेतु सिविल दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि सिविल न्यायालय नागरिकों के अधिकारों से संबंधित विवादों को सुनने और उनका निपटारा करने के लिए सक्षम न्यायालय है।
धारा 9 के अनुसार जब तक कोई विषय विधि द्वारा स्पष्ट रूप से वर्जित नहीं किया गया है, तब तक प्रत्येक वह विवाद जो सिविल प्रकृति का है, सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
इस प्रकार सिविल न्यायालय हमारे न्याय तंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है जो समाज में नागरिक अधिकारों की रक्षा और न्याय की स्थापना का दायित्व निभाता है।














