
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की अनुसूची 1 में हम देखते हैं कि कुछ अपराध संज्ञेय होते है और कुछ अपराध असंज्ञेय होते हैं। संज्ञेय अपराध के संबंध में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की जाती है और असंज्ञेय अपराध के संबंध में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है।
एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) क्या होती है?
जब कोई संज्ञेय अपराध कारित होता है तो उसकी सूचना सबसे पहले पुलिस को दी जाती है। यह सूचना मौखिक/लिखित/इलेक्ट्रॉनिक हो सकती है। घटना के बारे में दी गई सूचना के तथ्य को एफआईआर कहते हैं।
जहाँ संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस अधिकारी को मिलने पर उसका दायित्त्व है कि वह एक रिपोर्ट दर्ज करें और घटना का विवरण अंकित करे।
एफआईआर दर्ज हो जाती है तो उसके बाद जांच अधिकारी द्वारा एफआईआर में अंकित तथ्यों की जाँच करता है और अपना नतीजा थानाधिकारी को देता है। थानाधिकारी द्वारा वह नतीजा न्यायालय में पेश लर दिया जाता है।
विशेष: अगर, महिला अत्याचारों से संबंधित कोई गंभीर अपराध है तो ऐसे में थाने में उपस्थित महिला पुलिस अधिकारी को वह सूचना दी जाएगी और वही उसकी रिपोर्ट दर्ज करेगी।
(यह प्रावधान बीएनएसएस धारा 173 में किया गया है।)
एफआईआर दर्ज करवाने वाले व्यक्ति को थानाधिकारी द्वारा निःशुल्क प्रति दी जाती है।
पुलिस अधिकारी द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं किये जाने पर प्रावधान यह है कि पीड़ित व्यक्ति सम्बंधित पुलिस अधीक्षक को एफआईआर दर्ज करने के लिए प्रार्थना पत्र स्वयं पेश कर सकता है या डाक से प्रेषित कर सकता है।
उसके उपरांत भी एफआईआर दर्ज नहीं होती है तो धारा 175 की उपधारा 3 के अनुसार, सम्बंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष वह परिवादी हाजिर होगा और संबंधित मजिस्ट्रेट उस अपराध के सम्बंध में एफआईआर दर्ज करने और तफ्तीश करने का आदेश सम्बंधित थानाधिकारी को देगा।
थानाधिकारी को न्यायालय के आदेशानुसार एफआईआर दर्ज करके तफ्तीश करनी होती है।