#टॉप न्यूज़ राजस्थान NEXT विशेष जॉब/ एजुकेशन जीवन मंत्र

“बुक्के अप्रोच” स्पंदित रखिए दिल में…

By Next Team Writer

Published on:

मानव में संवेदनशील हृदय, स्वस्थ तन और प्रफुल्लित मन से चीजों को देखने, सोचने, समझने के साथ-साथ उन्हें पूर्णतः महसूस करने और परोपकार के कृत्यों से ही मानवता जीवित रहती है। व्यवहार और आचरण मानवीय मूल्यों के पोषक तत्व हैं, और परिपक्वता (मैच्योरिटी) उसका फल है।

मैच्योरिटी सामान्यतः उम्र के साथ बढ़ती है, परंतु यह किसी भी रूप में उम्र से अनिवार्य रूप से जुड़ी नहीं होती। कोई छोटी उम्र में ही परिपक्व हो जाते हैं, जबकि कई व्यस्क और वृद्ध होकर भी परिपक्वता पूर्ण व्यवहार नहीं कर पाते।

किसी भी व्यक्ति से उसकी आयु, पद और प्रतिष्ठा के अनुरूप आचरण और व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। यद्यपि व्यवहार के मानदंड स्थान, काल और परिस्थिति के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। सामने वाले का व्यवहार और आचरण भी हमारे व्यवहार को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

मानव व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है उसके शब्दों का चयन और टोन—यानि वह कैसे बोलता है और किस भाव से उच्चारण करता है। प्रेम और व्यवहार के रिश्ते सतत रूप से इन्हीं शब्दों की मिठास और विश्वास पर टिके रहते हैं। शब्दों में इतनी शक्ति होती है कि वर्षों से बना रिश्ता भी केवल एक गलत शब्द के प्रयोग से दरक सकता है और टूट सकता है।

इसलिए विशेष रूप से पब्लिक डोमेन में बोले जाने वाले शब्दों की प्रभावशीलता पर सजग रहना आवश्यक है। समीक्षक या न्यायाधीश बनकर किसी के बारे में टिप्पणी करना और उसके व्यवहार को उचित या अनुचित ठहराना सरल कार्य है। लेकिन आत्म-अवलोकन करते हुए स्वाभाविक रूप से मानवतावादी व्यवहार करना और उस पर सतत रूप से चलना—वास्तव में यही साधना है।

मानव से गलतियां होना स्वाभाविक है। कहते हैं, “मनुष्य गलती का पुतला है”। अक्सर ऐसा होता है, पर जो गलती को स्वीकार कर सुधार ले, वही सच्चा इंसान है। हम सभी को चाहिए कि किसी की गलतियों को पकड़कर न बैठें, बल्कि “माफी मांग लो या माफ कर दो” के सूत्र को जीवन में अपनाएं।

जैसे हम ईश्वर से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं, वैसे ही अन्य भी करते हैं। इसलिए जो बीत गया, उसे भुला देना ही श्रेयस्कर है। क्योंकि गलती सभी से होती है। प्रेम भाव की परंपरा सदा फलदायी और सदाबहार रहती है।

जैसे माता-पिता हर क्षण अपने बच्चों की गलतियों पर डांट कर भी उन्हें भूलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, वैसे ही माफ करने वाला भी माता-पिता स्वरूप होता है। वैसे भी जीवन बहुत अल्प और क्षणभंगुर है। इसमें अनावश्यक प्रयोगों में समय गंवाना, स्वयं के जीवन लक्ष्य से दूर जाना है।

इसलिए कहा जाता है कि जीवन में घटनाओं, व्यक्तियों और वस्तुओं को “लेट गो”—यानि ‘जाने दो’—सीखना चाहिए। खुद के भीतर छिपी शक्ति को पहचानते हुए, सही जीवन जीने की दिशा में अग्रसर रहना चाहिए। मानवता को जीवित रखते हुए जीवन जीने की प्रेरणा दूसरों में भी स्पंदित करना, विस्फारित करना—यही सच्चा जीवन है।

“वो बोलता है मेरी ही आवाज़ बनकर,
साथ चलता है, मरहम-ए-राज़ बनकर।
सीने से ग़म पार जब होने लगता है तो फिर,
उतरती है लेखनी साज़ बनकर।।”

Next Team Writer

हम, कमल और नारायण, हमें खुशी है कि हम NEXT टीम का हिस्सा है। यहाँ पर हमें कंटेंट मैनेजमेंट की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हमारा उद्देश्य आपको हर विषय पर सटीक और विस्तृत जानकारी प्रदान करना है। यदि आपको किसी भी विषय पर जानकारी की आवश्यकता हो या कोई सवाल हो, तो आप बेझिझक हमसे संपर्क कर सकते हैं। हमारा प्रयास है कि आपको पूरी और सही जानकारी मिले।

Advertisement placement

Leave a Comment

WhatsApp Join WhatsApp Group