कई बार किसी व्यक्ति के चेक बैंक में लगाने पर अनादरित हो जाते हैं। ऐसे में पीड़ित पक्ष को न्यायालय द्वारा न्याय मिल सकता है। तो आज हम चेक अनादरण मामले पर जानते है एडवोकेट दीपिका सोनी से।
पराक्राम्य लिखत अधिनियम 188 की धारा 138 (NI एक्ट सेक्शन 138)
चेक अनादरण मामला उस व्यक्ति पर लागू होता है जिसने यह चेक अपनी देनदारी के एवज में दिया हो और वह अनादरित हो जाता है।
चेक अनादरण का मामला निम्न बिंदुओं से हम समझ सकते हैं-
- चेक किसी ऋण या भुगतान को करने के लिए जारी किया हुआ हो।
- चेक जारी करने के 3महीने के भीतर बैंक में प्रस्तुत किया गया हो।
- चेक पर्याप्त धनाभाव और चेक देने वाले व्यक्ति की दुर्भावनापूर्ण आशय के कारण रिटर्न हुआ हो।
- चेक अनादरण होने के बाद इसकी सूचना 30दिनों के भीतर चेक जारी करने वाले को एक कानूनी नोटिस 15दिनों की अवधि का दिया जाना आवश्यक है।
- उक्त नोटिस रजिस्टर्ड डाक पते पर जारी किया जावे।
- नोटिस देने के बाद चेक जारी करने वाला पयमेंट नहीं करता है तो 30दिनों के भीतर न्यायालय में परिवाद पेश करना जरूरी है।
उपरोक्त में कोई भी शर्त पूरी नहीं होती है तो अनादरण वाला मामला नहीं होगा। चेक जारी करने वाला न्यायालय के समक्ष दोषी साबित हो जाता है तो उसे 2वर्ष तक की सजा और चेक की राशि से दोगुनी राशि हर्जाने के रूप में भरने की सजा मिल सकती है।
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एडवोकेट दीपिका सोनी: एडवोकेट दीपिका सोनी ने लॉ में मास्टर डिग्री हासिल कर रखी है। ये एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ न्याय क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही है। ये वरिष्ठ एडवोकेट मोहनलाल सोनी की पुत्रवधु है और वर्तमान में राजस्थान जुडिशल सर्विस की तैयारी में संलग्न है। |