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सृजन की सतत लहरें- रामावतार कुमावत

By Next Team Writer

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इंसान के भीतर सृजन की लहरें निरंतर मचलती रहती हैं। जिंदगी बार-बार प्रकृति के सृजन को पुकारती है, उसे आवाज देती है। सृजनहार ने इस सृष्टि को अपनी सर्वोत्तम कृति के रूप में रचा है और इंसान उसी सृजन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। प्रकृति की अपूर्व सुंदरता उसकी अनवरत सृजनशीलता की साक्षी है।

सृजन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, किंतु मनुष्य उसे अपनी चेतना और संवेदनशीलता से और भी रचनात्मक बना सकता है। यह रचनात्मकता और सृजनशीलता प्रकृति की ओर से मनुष्य को आनुवांशिक भेंट है- अस्तित्व की रक्षा और विकास हेतु।

हर व्यक्ति के भीतर एक विशिष्ट गुण, एक अद्वितीय क्षमता छिपी होती है, जो उसे अन्य सभी से अलग बनाती है। आवश्यकता बस इस गहन शक्ति को पहचानने और उसे सही दिशा में साधने की है। जिस क्षण मनुष्य अपनी इस अंतर्निहित प्रतिभा को जागृत कर सृजन में लगाता है, उसी क्षण से उसका आत्म-परिवर्तन आरंभ होता है। यही रचनात्मक ऊर्जा साधारण को असाधारण में बदलती है और यही ऊर्जा वैश्विक परिवर्तन का आधार बनती है।

जोखिम और जीवन के चमत्कार
जब कोई अपने भीतर की रचनात्मक क्षमता को पहचान लेता है, तब जोखिम उठाने का साहस स्वयं जाग्रत होता है। दरअसल, जीवन का प्रत्येक कदम एक जोखिम है। परंतु चमत्कार उन्हीं के हिस्से आते हैं, जो इन जोखिमों को अपनाते हैं, जो अनपेक्षित को घटित होने देते हैं।

हर मोड़ पर जीवन हमें उस अनदेखे, अनजाने क्षण के सामने खड़ा करता है, जिसमें विकास के बीज छिपे होते हैं। दुर्भाग्य से हम अक्सर अनपेक्षित से डरते हैं, उससे बचने का प्रयास करते हैं। लेकिन याद रखिए, दिलचस्प चीजें तभी जन्म लेती हैं जब हम जोखिम उठाने का साहस करते हैं।
जिज्ञासु रहिए, चुनौतियों को गले लगाइए, हार-जीत की परवाह किए बिना पूरे उत्साह से जीवन की हर कठिन घड़ी का सामना करिए।
और हाँ, संघर्ष इतना भी न हो कि स्वयं को ही जला डाले। अपने जीवन का आधा हिस्सा आनंद, साहसिकता और स्वयं के प्रेम के लिए सुरक्षित रखिए। जीवन का असली रस केवल दौलत कमाने में नहीं, बल्कि श्रम और शांति से अर्जित आनंद का स्वाद चखने में है।

आनंद का उत्सव
जब तक जीवन है,
तब तक जंगलों में भटकिए,
पहाड़ों पर चढ़िए,
नदियों की धाराओं के साथ बहिए,
समान्य जीवन के बीच भी एक अनिच्छुक उत्साही बनिए,
एक अंशकालिक क्रांतिकारी बनिए,
एक अधूरे दिल से समर्पित जुनूनी बनिए,
अपने शरीर को सक्रिय और आत्मा को जीवंत बनाए रखिए,
स्वच्छ हवा में गहरी साँसें भरिए,
अपनी कल्पनाओं के उन रहस्यमयी, विस्मयकारी क्षणों को पुनः जीने का प्रयास करिए, जहाँ आपने स्वयं को अपने उच्चतम स्वरूप में महसूस किया हो। सृष्टि के सृजन का हिस्सा बनिए और इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा का वहन करिए।

“खुद को कमतर न समझो, न ही मन को बोझिल बनाओ।
धूल से ढके हीरे सी है यह जीवन की अनुपम सौगात।”

Next Team Writer

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