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अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट पर करोड़ों के कैश ट्रांजैक्शन: हाईकोर्ट सख्त, राज्य व केंद्र सरकार, IT और ED से मांगा जवाब

By Next Team Writer

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NEXT 9 मई, 2025। राजस्थान में जमीनों की खरीद-फरोख्त और अन्य सिविल मामलों में हो रहे भारी कैश ट्रांजैक्शन पर हाईकोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि इस तरह के ट्रांजैक्शन कालेधन को बढ़ावा दे रहे हैं। जस्टिस समीर जैन की एकल पीठ ने शंकरलाल खंडेलवाल और अन्य याचिकाकर्ताओं की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार, केंद्र सरकार, इनकम टैक्स विभाग, ईडी और पुलिस विभाग से जवाब मांगा है।

20 हजार से ज्यादा कैश ट्रांजैक्शन गैरकानूनी, फिर भी हो रही करोड़ों की डील

कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि इनकम टैक्स एक्ट 1961 के मुताबिक 20 हजार रुपए से अधिक कैश लेन-देन प्रतिबंधित है। खास परिस्थितियों में डिक्लेरेशन के साथ 2 लाख रुपए तक की अनुमति दी जा सकती है। इसके बावजूद प्रदेश में जमीन, फ्लैट, लेन-देन और आपसी समझौतों में बिना रजिस्ट्रेशन के लाखों-करोड़ों की रकम स्टांप पेपर पर लिखकर दी जा रही है।

अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट से हो रहा सरकार को घाटा

हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले इंडियन स्टाम्प्स एक्ट 1899 और राजस्थान स्टाम्प्स एक्ट 1998 का सीधा उल्लंघन हैं। अगर एग्रीमेंट रजिस्टर्ड हो तो न केवल सरकार को राजस्व मिलता है, बल्कि लेन-देन की सूचना एजेंसियों को भी मिलती है, जिससे निगरानी आसान होती है। लेकिन अभी यह तक नहीं पता चल पाता कि बड़ी रकम कहां से आई और उसका स्रोत क्या है।

कोर्ट में पेश हुए 9 जिलों के एसपी, जयपुर पुलिस कमिश्नर भी मौजूद

मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने जयपुर पुलिस कमिश्नर सहित सीकर, दौसा आदि 8 जिलों के एसपी को भी तलब किया। कोर्ट ने सवाल किया कि जब इस तरह के बड़े पैमाने पर कैश ट्रांजैक्शन हो रहे हैं, तो अब तक इनकम टैक्स और ईडी ने क्या कार्रवाई की है?

वकील मनीष गुप्ता बोले- “एफआईआर रद्द के लिए कई याचिकाएं लगी हैं”

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील मनीष गुप्ता ने बताया कि ऐसे कई मामले हाईकोर्ट में लंबित हैं, जिनमें पुलिस ने एक पक्ष के खिलाफ अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट के आधार पर एफआईआर दर्ज कर दी। जबकि कानूनी रूप से ऐसे समझौतों को वैध नहीं माना जा सकता। फिर भी पुलिस न जांच एजेंसियों को सूचना देती है, न ही स्रोत की पड़ताल करती है।

हाईकोर्ट का सवाल- कैश ट्रांजैक्शन पर कार्रवाई क्यों नहीं?

कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ सिविल विवाद नहीं, बल्कि कानून और व्यवस्था से जुड़ा मामला है। इससे न केवल कालेधन को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि सरकार को करोड़ों का राजस्व भी गंवाना पड़ रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब जवाबदेही तय की जाएगी।

Next Team Writer

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