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श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र की बेटी ने चुना खुद का मुकाम, आज देश-विदेश में इनका नाम। पढ़े नेक्स्ट विशेष।

By Next Team Writer

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NEXT 14दिसम्बर, 2024।  श्रीडूंगरगढ़ के तोलियासर गांव में 10मई 2000 को पिता धनाराम मेघवाल और माता केलुदेवी के यहां एक बालिका का जन्म हुआ और अपने से बड़े एक भाई राजू और बहन शारदा के बाद वापिस जन्मी लड़की के लिए कोई खास बात घर में नहीं थी। वह भी एक सामान्य लड़की की तरह पैदा हुई और सामान्य लालन पोषण हुआ। इसे नाम राधा दिया गया और आज यही राधा राधा हिंदुस्तानी के नाम से राजस्थान सहित अन्य राज्यों में अपने राजस्थानी लोक नृत्य घूमर, भवई, कालेबलिया के लिए जानी जाती है।

बहन- भाई ने किया सपोर्ट, गुरु दे रहे हर कदम साथ

तोलियासर के पास के ही एक छोटे से गांव लाछड़सर की सरकारी स्कूल में 10वीं तक अपनी शिक्षा पूरी की। राधा बताती है कि मेरी मां इसी स्कूल में खाना बनाने का काम करती थी इसलिए मैं इस स्कूल में पढ़ पाई। वरना मैं इतना भी नहीं पढ़ पाती। क्योंकि हमारे घर से स्कूल 6किमी दूर था। 6किमी आना और 6किमी ही जाना। उसमें भी मेरे पापा लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ थे। उनकी सोच थी कि लड़की को किसी और के घर जाकर चौका ही तो संभालना है। परन्तु मेरे बड़े भाई राजू और बड़ी बहन शारदा ने हमेशा मेरा सपोर्ट किया। मुझे बचपन से ही नाचने का शौक था। 10वीं में हमारे एक शिक्षक पूराराम गांधी ने मेरी प्रतिभा को पहचाना। मैं जब 15अगस्त और 26जनवरी को स्कूल में डांस करती थी तो उन्हें मेरे भीतर की प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने मुझे आईटीआई के लिए रतनगढ़ भेजा। उसके बाद महारानी सुदर्शना कॉलेज बीकानेर से कला संकाय में स्नातक किया और वर्तमान में एमए चल रही है। स्नातक के दौरान मुझे एनसीसी जॉइन करने का मौका मिला। वहां मुझे नेहा पंवार को देखकर भवई नृत्य करने का शौक चढ़ा और वह ऐसा चढ़ा कि मैं घण्टों-घण्टों इसकी प्रैक्टिस करती और काफी तकलीफें सहकर भी इसे छोड़ा नहीं। एनसीसी में भी मुझे सी सर्टिफिकेट मिला है।

विदाउट पैन, नो गेन
शुरू में मुझे काँच, किलो, तलवार से खूब दर्द होता था परन्तु लक्ष्य अटल था कि मुझे इस कला में निपुण होना है और कई वर्षों की साधना के बाद आज कुछ हद तक इसकी कला में सिद्धस्त हुई हूँ। बावजूद इसके दर्द आज भी होता है परन्तु कहते हैं ना “विदाउट पैन, नो गेन”। मुझे हर दर्द को सहना है परन्तु अपने राजस्थान की इस लोक नृत्य कला का परचम पूरे विश्व में फहराना है।

महीनों बेड पर रही, पर जज्बा नहीं खोया, पाया मुकाम

राधा ने बताया कि उनके गले में गांठ बन गई थी। उसे पता भी नहीं था। बाद में इसका ऑपेरशन हुआ। तब डॉक्टर ने कहा कि आवाज रह भी सकती है और जा भी सकती है। यह दिन उसकी जिंदगी का ब्लैक डे था। कई महीनों तक बेड पर रही। मन में डर था कि क्या अब मैं वैसे ही घड़े लेकर नृत्य कर पाऊंगी? पर मैं हार कर बैठ नहीं सकती थी। और पूरे जज्बे के साथ वापिस लौट आयी अपनी दुनिया में। राधा ने बताया कि उसका वजन 48किलो है और लंबाई 5 फीट 5इंच है। जबकि 26घड़ों की हाइट 7फीट तक होती है। उन्हें बैलेंस कर पाना शुरुआत में काफी मुश्किल भरा रहा पर अब सब अच्छा है। राधा अब तक यूपी, दिल्ली और राजस्थान में कई जिलों में प्रस्तुतियां दी चुकी है। उसने संदेश दिया कि व्यक्ति को लगे कि उसके अंदर कोई प्रतिभा है तो उसे आगे बढ़ना चाहिए। अगर उसे कोई भी साथ न दे तो भी उसे हारना नहीं चाहिए। और जो कोई एक साथ दे, उसे अपना मान आगे बढ़ना चाहिए।

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