
🪔 राजस्थान और सती प्रथा से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन
घोसुंडी अभिलेख में सती प्रथा का प्राचीनतम उल्लेख मिलता है, जो इस प्रथा की ऐतिहासिक जड़ों की पुष्टि करता है।
मानमोरी अभिलेख का उल्लेख भी आता है, जिसे प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड ने समुद्र में फेंक दिया था।
👉 सती प्रथा के प्रकार:
- सहमरण – पति के साथ स्वयं सती होना।
- अनुमरण – पति की मृत्यु के बाद किसी समय सती होना।
‘रेहला’ नामक पुस्तक में भी सती प्रथा का साहित्यिक उल्लेख मिलता है।
राजस्थान में सती प्रथा की अंतिम घटना सन् 1987 में सीकर जिले के देवराला गांव में घटी थी।
🏰 अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक बातें:
- जौहर मेला: चित्तौड़गढ़ में हर वर्ष आयोजित होता है, जो वीरांगनाओं के बलिदान को समर्पित होता है।
- हवेलियों का शहर: जैसलमेर को इसकी सुंदर हवेलियों के कारण यह उपाधि दी जाती है।
- रानी सती मेला: झुंझुनू में रानी सती मंदिर परिसर में विशाल मेला आयोजित होता है।
🔥 जौहर क्या है?
यह एक प्रथा थी जिसमें रानियाँ दुश्मनों के हाथों अपमानित होने के बजाय अग्नि में प्रवेश कर आत्मोत्सर्ग करती थीं।
इतिहास में रानी पद्मिनी का जौहर (चित्तौड़गढ़) सबसे प्रसिद्ध माना जाता है।
विषय | विवरण |
---|---|
सती प्रथा का प्राचीनतम उल्लेख | घोसुंडी अभिलेख में मिलता है |
मानमोरी अभिलेख | कर्नल टॉड द्वारा समुद्र में फेंक दिया गया |
सती प्रथा के प्रकार | सहमरण – पति के साथ सती होना अनुमरण – पति की मृत्यु के बाद किसी समय सती होना |
साहित्यिक उल्लेख | ‘रेहला’ पुस्तक में सती प्रथा का उल्लेख |
राजस्थान की अंतिम सती | 1987, देवराला गाँव, सीकर जिला |
जौहर मेला | चित्तौड़गढ़ में वीरांगनाओं की स्मृति में आयोजित |
हवेलियों का शहर | जैसलमेर – प्रसिद्ध हवेलियों के कारण |
रानी सती मेला | झुंझुनू – रानी सती मंदिर परिसर में आयोजित |
जौहर क्या है? | रानियों द्वारा अपमान से बचने हेतु अग्नि में आत्मोत्सर्ग |
रानी पद्मिनी का जौहर | चित्तौड़गढ़ – राणा रतन सिंह की पत्नी, ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध |