
आज मंगलवार को शनि जयंती का पावन पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर क्षेत्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य राजगुरु पंडित देवीलाल उपाध्याय ने जानकारी देते हुए बताया कि शनि देव को ज्योतिष शास्त्रों में नवग्रह मंडल के न्यायाधीश के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। शनि, सूर्य के पुत्र हैं और कर्मों के अनुसार फल प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं।
पंडित उपाध्याय के अनुसार, किसी भी जातक की जन्म कुंडली में यदि शनि उच्च स्थान पर स्थित हो तो वह व्यक्ति यशस्वी, ऐश्वर्यवान, दीर्घायु तथा दार्शनिक चिंतन-शक्ति से संपन्न होता है। किंतु यदि शनि नीच स्थान पर हो, तो वह निर्धनता, दासता, और अनैतिक व्यवहार की ओर प्रवृत्त कर सकता है। अन्य ग्रहों की तुलना में शनि को सबसे अधिक बलशाली भी माना जाता है।
इसी क्रम में श्री ऋषिकुल संस्कृत विद्यालय के भूतपूर्व सहायक आचार्य राजगुरु पंडित रामदेव उपाध्याय ने बताया कि शनि जयंती के दिन कुछ कार्य करना विशेष रूप से वर्जित होता है, जबकि कुछ विशेष उपाय शनि की कृपा प्राप्त करने में सहायक माने जाते हैं।
शनि जयंती के दिन क्या न करें:
- जिनके घर में प्रसूति या सूतक है, उन्हें शनि पूजन से परहेज करना चाहिए।
- इस दिन कांच या लोहे से बनी वस्तुएं घर में नहीं लानी चाहिए।
- पीपल के पत्ते तोड़ना वर्जित माना गया है।
- सरसों का तेल, काली उड़द, लकड़ी आदि बाजार से खरीद कर घर लाना निषिद्ध है।
- बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए, अन्यथा आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।
- मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- भगवान शनिदेव के दर्शन करते समय केवल चरणों के दर्शन करें, मुख के नहीं।
शनि जयंती के दिन क्या करें:
- यदि आपकी जन्म या गोचर कुंडली में शनि पीड़ित है, तो इस दिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और तेल का दीपक प्रज्वलित करें।
- शाम के समय शनि मंदिर में जाकर दान करें। विशेष रूप से काली उड़द, काला तिल, कंबल आदि का दान शनि कृपा दिलाने में सहायक होता है।
शनि ही क्यों माने जाते हैं कर्मफलदाता?
इस प्रश्न के उत्तर में पंडित रामदेव उपाध्याय ने बताया कि शनिदेव की माता छाया ने उनके गर्भकाल में भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तपस्या का प्रभाव शनि पर भी पड़ा, जिससे उनका वर्ण श्याम हो गया। शनि का श्याम वर्ण देखकर उनके पिता सूर्यदेव ने माता छाया पर संदेह किया। इससे शनि क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध के प्रभाव से सूर्यदेव को कुष्ठ रोग हो गया तथा उनका भी वर्ण श्याम हो गया।
बाद में शनिदेव ने भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया कि वे सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देंगे। इसी कारण उन्हें कर्मफलदाता कहा गया है।
शनि जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और संयम का दिन है। इस दिन शुभ आचरण और दान-पुण्य के माध्यम से शनिदेव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। श्रद्धा और नियमपूर्वक किया गया उपासना निश्चित रूप से जीवन में शांति, समृद्धि और स्थिरता लाती है।