
श्री महालक्ष्मी पूजन – विधि, मुहूर्त एवं आवश्यक सामग्री
हर व्यक्ति यथासम्भव प्रयास करता है कि कुछ ऐसे उपाय या विधान अपनाएं या पूजन कुछ ऐसा करें कि माँ महालक्ष्मी का उस पर आशीर्वाद सदैव बना रहे।
माँ भगवती महालक्ष्मी के पाने पर या प्रतिमा पर फल, मेवा, नैवैद्य, पुष्प, बताशे आदि मनोयोग और विधि-विधान से अर्पित करके पूजन किया जाता है। दीपों की सजावट की जाती है।
इस पूजन विधि में भावना शुद्धि के साथ कुछ आवश्यक चरण भी हैं, जिनका आम पाठक भी सहजता से पालन करते हुए अपने घर या प्रतिष्ठान पर पूजन कर सकता है।
धनतेरस मुहूर्त
📅 18 अक्टूबर, 2025 (शनिवार)
शुभ संवत 2082, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (दोपहर 12:20 बजे से आरम्भ)
नक्षत्र: पूर्वा फाल्गुनी (दोपहर 3:42 तक), तत्पश्चात उत्तरा फाल्गुनी
चन्द्र राशि: सिंह (रात्रि 10:12 बजे के बाद कन्या)
🔯 धनतेरस मुहूर्त (भारतीय समयानुसार)

विशेष पूजन काल:
🪔 धनतेरस को यम दीप दान, श्री पूजन एवं श्री धन्वंतरि पूजन – सायं 6:03 से रात्रि 8:35 बजे तक विशेष शुभ।
💰 खरीददारी का विशेष मुहूर्त (श्रीडूंगरगढ़ समयानुसार)
- दोपहर 12:20 से 12:41 बजे तक
- शाम 3:00 से 4:31 मिनट तक (अमृत वेला)
🌕 श्री महालक्ष्मी पूजन दीपावली मुहूर्त
📅 20 अक्टूबर, 2025 (सोमवार)
शुभ संवत 2082, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी
सायं 3:45 बजे उपरांत अमावस्या आरम्भ
नक्षत्र: हस्त (रात्रि 8:17 तक), तत्पश्चात चित्रा
चन्द्र राशि: कन्या
📒 बही पूजन विशेष मुहूर्त (श्रीडूंगरगढ़ समयानुसार)
- सुबह 11:54 से 12:42 तक (अभिजीत मुहूर्त)
- शाम 4:32 से 5:57 तक (अमृत वेला)
🪔 पूजन विशेष मुहूर्त

📆 रोकड़ मिलान मुहूर्त
📅 22 अक्टूबर, 2025 (बुधवार)
- प्रातः 6:44 से 9:33 बजे तक — लाभ व अमृत वेला
- सुबह 10:58 से दोपहर 12:22 बजे तक — शुभ वेला
🌿 पूजन के लिए आवश्यक सामग्री

प्रारम्भिक पूजन विधि
- चांदी या कांसी की थाली में कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं।
- एक पूजन सुपारी पर मोली लपेटकर गणपति बनाकर स्वास्तिक पर स्थापित करें।
- तांबे/पीतल/मिट्टी के कलश में जल भरकर उसमें साबुत सुपारी, पीली सरसों, सर्व औषधि, सिक्का डालें।
- कलश पर मोली बांधें, स्वास्तिक बनाएं और पांच पान के पत्ते लगाकर नारियल स्थापित करें।
- एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गणेश, लक्ष्मी और कलश की स्थापना ईशान कोण (पूर्व-उत्तर) में करें।
- यजमान सपत्नीक पूर्वाभिमुख बैठें।
- पंचामृत, गंध, पुष्प, दीप, धूप आदि सामग्री तैयार करें।
🪔 विधान पूजन का
शुद्धिकरण मंत्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु (3 बार उच्चारण करें)।
गणेश एवं गौरी ध्यान
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम॥
गणेश-अम्बिका पूजन
- धूप दिखाएं:
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः धूपमाघ्रापयामि। - दीपक दिखाएं:
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः दीपं दर्शयामि। - प्रसाद अर्पित करें:
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः नैवेद्यं निवेदयामि। - पुष्प अर्पण करें:
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः गन्धाक्षत पुष्पं समर्पयामि।
कलश पूजन
कलश के अंदर देवी-देवताओं का ध्यान करें:
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा॥
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः॥
भगवान वरुण को धूप दिखाते हुए बोले- ॐ वरुणादि आवाहितेभ्यो नमः धूपमाघ्रापयामि।
कलश को दीपक दिखाते हुए बोले – ॐ वरुणादि आवाहितेभ्यो नमः दीपंदर्शायामि
अब कलश देवता को नैवैद्य अर्पित करते हुए बोले- ॐ वरुणादि आवाहितेभ्यो नमः नैवेद्यम निवेदयामि।
एक पुष्प के ऊपर कुमकुम व चावल लगाकर भगवान कलश देवताबको अर्पित करते हुए बोले- ॐ वरुणादि आवाहितेभ्यो नमः गंधाक्षत पुष्पं समर्पयामि।
श्री महालक्ष्मी पूजन विधि
ध्यान एवं आह्वान
- ॐ लक्ष्मी गणपतिभ्यां नमः ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। बोलते हुए पुष्प चढ़ाएं।
- ॐ लक्ष्मी गणपतिभ्यां नमः आह्वनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
- ॐ लक्ष्मी गणपतिभ्यां नमः आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। बोलकर आसन के लिए पुष्प अर्पित करें।
स्नान एवं अभिषेक विधि
क्रमशः-
- ॐ लक्ष्मी गणपतिभ्यां नमः बोलकर 4 बार जल चढ़ाएं। और बोले पादयो: पाद्य समर्पयामि। हस्तयोर्घ्यम समर्पयामि। आचमनीयम समर्पयामि। सर्वांगेषु स्नानम समर्पयामि।
- पंचामृत स्नान: दूध, दही, घी, मधु, शर्करा।
- पंचामृत के बाद शुद्ध जल से स्नान।
- गंधयुक्त चंदन जल से स्नान।
- वस्त्र, आभूषण, इत्र, सिंदूर, कुमकुम, पुष्प अर्पण करें।
- धूप, दीप, नैवेद्य, फल, ताम्बूल, दक्षिणा अर्पित करें।
आरती और समापन मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥या देवी सर्व भूतेषु महालक्ष्मीरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
फिर कहें —
ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतु।
आसन को प्रणाम करें और श्रद्धा से पूजन पूर्ण करें।



















