
संपत्ति का विभाजन क्या है?
विभाजन का तात्पर्य है – जब किसी संपत्ति पर एक से अधिक व्यक्तियों का अधिकार हो और उनमे से कोई एक व्यक्ति अपना हिस्सा अलग करना चाहता हो, तो वह प्रक्रिया विभाजन कहलाती है। इस प्रक्रिया के उपरांत व्यक्ति अपने हिस्से का पूर्ण स्वामी बन जाता है और उस पर अन्य साझेदारों का कोई अधिकार नहीं रह जाता।
संयुक्त संपत्ति की प्रकृति
संयुक्त संपत्ति कई आधारों पर अस्तित्व में आ सकती है:
- विरासत में प्राप्त संपत्ति, जो किसी मृतक के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है।
- साझेदारी में क्रय की गई संपत्ति, जब दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी संपत्ति को संयुक्त रूप से खरीदा जाता है।
दोनों ही स्थितियों में वह संपत्ति संयुक्त संपत्ति मानी जाती है और इसका विभाजन नियमानुसार किया जा सकता है।
विभाजन की विधियाँ
- कानूनी दावा द्वारा विभाजन
यदि संयुक्त हिस्सेदारों के बीच सहमति नहीं बनती, तो कोई भी हिस्सेदार विभाजन अधिनियम 1893 के अंतर्गत न्यायालय में दावा प्रस्तुत कर सकता है। न्यायालय मौका निरीक्षण की रिपोर्ट के आधार पर संपत्ति का बँटवारा कर सकता है। - विभाजन पत्र (Partition Deed) के माध्यम से
यदि सभी साझेदार आपसी सहमति से बँटवारा चाहते हैं, तो एक विभाजन पत्र तैयार किया जा सकता है। यह दस्तावेज पंजीकृत होना आवश्यक होता है और इसकी वैधता कानूनी रूप से स्वीकार्य होती है। - न्यायिक सहमति व डिक्री विभाजन के दावे में भी पक्षकारों द्वारा राजीनामा के माध्यम से समझौता पत्र लिखकर न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है। तब न्यायालय समझौतानामा के अनुसार, संपति के विभाजन की डिक्री पारित कर सकता है। और संयुक्त संपत्ति में हिस्सेदारों को उनके हक व हिस्से के अनुसार काबिज करवा दिया जाता है और उन्हें मालिक बना दिया जाता है।
समझौता पत्र को न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है, जहाँ से डिक्री पारित होती है। यह विधि विवाद-मुक्त विभाजन सुनिश्चित करती है। - मूल्य के आधार पर विभाजन
यदि भौतिक रूप से संपत्ति का विभाजन संभव न हो (जैसे बहुमंजिला भवन या साझा दुकान), तो न्यायालय उसका बाजार मूल्य निर्धारित कर हिस्सेदारों को उनका हिस्सा धनराशि के रूप में प्रदान करवा सकता है।
कानूनी अधिकार और संरक्षण
विभाजन अधिनियम 1893 की धारा 9 के अनुसार, सह मालिकों के मध्य संपत्ति का न्यायिक विभाजन करने की शक्ति न्यायालय को प्राप्त है। यह प्रावधान विशेषकर उन परिस्थितियों में सहायक होता है, जहाँ पारिवारिक तनाव या मतभेद के कारण आपसी सहमति से विभाजन संभव नहीं हो पाता।
निष्कर्ष
संयुक्त संपत्ति के हिस्सपाँति विवाद परिवार को दीर्घकालिक तनाव और कानूनी उलझनों में डाल सकते हैं। ऐसे में समय रहते उचित कानूनी उपाय अपनाकर संपत्ति का न्यायोचित विभाजन कर लेना ही बुद्धिमत्ता है। सहमति आधारित विभाजन न केवल पारिवारिक संबंधों को सुरक्षित रखता है, बल्कि प्रत्येक सदस्य को उसकी वैध संपत्ति का स्वतंत्र अधिकार भी सुनिश्चित करता है।