NEXT 10दिसम्बर 2024 | आज 11 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती मनाई जाएगी। यह दिन हिंदू धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध भूमि पर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता का यह उपदेश जीवन के सभी पहलुओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है और आज भी लोगों को सही दिशा में जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। इस दिन को मनाने का एक प्रमुख कारण श्रीकृष्ण का यह उपदेश है कि “कर्म न करना भी एक कर्म है”, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए महत्वपूर्ण है।
मोक्षदा एकादशी का महत्त्व
मोक्षदा एकादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, और यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए होती है जो मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। एकादशी के दिन उपवास करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त होते हैं और उसे आत्मा की शांति प्राप्त होती है। मोक्षदा एकादशी का महत्त्व इस बात में निहित है कि यह व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर, मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करती है।
यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन और उपदेशों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। इस दिन को खास बनाने का कारण यह भी है कि गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी एक साथ मनाई जाती है, जिससे भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण के शरण में आने का अवसर मिलता है।
गीता जयंती और श्रीकृष्ण का उपदेश
गीता जयंती का दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है जो जीवन के उच्च प्रयोजनो को प्राप्त करना चाहते हैं। गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध भूमि पर अर्जुन को दिया था। अर्जुन युद्ध से पहले मानसिक और शारीरिक रूप से थका हुआ था। वह यह तय नहीं कर पा रहा था कि युद्ध में भाग लिया जाए या नहीं। तब श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया, जिसमें जीवन के उद्देश्य, कर्म और धर्म के महत्व को समझाया गया।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “कर्म करो, लेकिन फल की इच्छा मत करो”। उनका यह उपदेश जीवन को सही दिशा में जीने के लिए एक अमूल्य मार्गदर्शन है। श्रीकृष्ण का कहना था कि जीवन में कर्म करना आवश्यक है, लेकिन हमे उन कर्मों के फल की कामना नहीं करनी चाहिए। यदि हम फल की चिंता करने लगते हैं, तो हम अपने कर्मों में असंतुलन और अशांति पा सकते हैं।
“कर्म न करना भी एक कर्म है” – श्रीकृष्ण की शिक्षा
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा दी, वह थी कि “कर्म न करना भी एक कर्म है”। इस उपदेश का तात्पर्य है कि जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने के बावजूद उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करता या अपने कर्मों से भागता है, तो वह भी एक प्रकार का कर्म ही करता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों से भागता है और समाज में कुछ नहीं करता, तो वह भी अपनी भागीदारी को नकारते हुए जीवन को निष्क्रिय तरीके से जी रहा है।
श्रीकृष्ण का यह संदेश जीवन के उद्देश्य को समझाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। जब तक हम अपने कार्यों से जिम्मेदार नहीं होंगे, तब तक हम वास्तविक शांति और संतुष्टि नहीं पा सकते। यह उपदेश यह भी समझाता है कि यदि हम अपने कर्मों से भागते हैं तो हम अपने जीवन के प्रति लापरवाह और आलसी हो जाते हैं, जो मानसिक और आध्यात्मिक रूप से हमारी उन्नति को रोकता है।
कर्म का महत्व और सफलता की कुंजी
श्रीकृष्ण ने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को अपने कर्मों में ईमानदारी से जुट जाना चाहिए। जीवन में सफलता पाने के लिए कर्म करने की आवश्यकता है। कर्म करने से न केवल व्यक्ति की आत्मा की शांति मिलती है, बल्कि यह उसे अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर भी करता है। जब हम किसी कार्य को सच्चे मन से करते हैं, तो उसे करने का तरीका और उद्देश्य दोनों ही हमें सफलता की ओर ले जाते हैं।
श्रीकृष्ण के अनुसार, “कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो”, यह जीवन में संतुलन और समर्पण का प्रतीक है। व्यक्ति को अपने कार्यों को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए, लेकिन उसके मन में फल की कामना नहीं होनी चाहिए। जब व्यक्ति अपने कर्मों को भगवान को समर्पित करता है और फल की चिंता नहीं करता, तब उसकी आत्मा को शांति और संतुष्टि मिलती है।
मोक्ष और शांति की प्राप्ति
गीता का उपदेश यह भी बताता है कि मोक्ष केवल कर्म के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष का मतलब है संसार के बंधनों से मुक्ति और आत्मा की शांति। जब हम सही कर्म करते हैं, तो हम अपने कर्मों के फल से मुक्त हो जाते हैं और आत्मा की उच्च अवस्था को प्राप्त करते हैं। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के दिन भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को आत्मसात करना और अपने जीवन को सही दिशा में ले जाना बहुत महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
11 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती का अवसर हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में कर्म का क्या महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझते हुए हमें अपने जीवन में सही कर्म करने चाहिए, बिना किसी फल की चिंता किए। यह उपदेश हमें यह सिखाता है कि कर्म करना, न करना, या उसे सही तरीके से करना सभी जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। जब हम अपने कर्मों को शुद्ध मन से करते हैं, तो हम न केवल मानसिक शांति प्राप्त करते हैं, बल्कि मोक्ष की ओर भी अग्रसर होते हैं।