NEXT 30 मार्च, 2025। समय के साथ गणगौर उत्सव का स्वरूप भी बदल रहा है। जहां एक ओर पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आधुनिकता का रंग भी इस त्योहार में घुलता जा रहा है। पहले जहां गणगौर पूजन के दौरान महिलाएं और युवतियां पारंपरिक लोकगीत गाकर उत्सव मनाती थीं, वहीं अब डीजे और साउंड सिस्टम की धुनों पर नृत्य का चलन बढ़ गया है।

अब गणगौर केवल पूजा तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि इसमें हल्दी सेरेमनी, रिंग सेरेमनी और कलर थीम जैसे नए ट्रेंड जुड़ गए हैं। शहरी इलाकों में यह बदलाव तेजी से देखा जा रहा है, वहीं गांवों और ढाणियों तक भी इसकी छाप पहुंचने लगी है।

हालांकि, परंपराओं की जड़ें अभी भी मजबूत हैं। दूर्वा और फोग (फुलड़ा) जैसी पारंपरिक पूजा सामग्रियों का उपयोग आज भी किया जा रहा है। मायरा जैसी रीति-रिवाजों की परंपरा भी पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई जा रही है।

वरिष्ठजनों का मानना है कि यह बदलाव परंपरा और आधुनिकता के मेल का प्रतीक है। गणगौर उत्सव अब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव बन गया है, जो न केवल शहरों में बल्कि गांवों और ढाणियों में भी अपनी नई पहचान के साथ मनाया जा रहा है।
