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हिन्दू मैरिज एक्ट 1956: क्या कहते हैं दाम्पत्य अधिकार

By Next Team Writer

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अगर बिना किसी कारण से पति- पत्नी अलग रहने लगे जाते हैं और कोई एक पक्ष कोर्ट में पिटीशन फ़ाइल करके दाम्पत्य जीवन के पुनर्स्थापन की डिक्री जारी करने का अनुरोध करता है। अगर, कोर्ट को दोनों पक्षों के अलग रहने का कोई पर्याप्त आधार नहीं लगता है तो कोर्ट दोनों को साथ में रहने का आदेश जारी कर सकता है।
धारा 9 के अनुसार, पति और पत्नी दोनों के लिए है। दोनों में कोई भी पिटीशन फ़ाइल कर सकता है। यह एक बेसिक प्रोविजन है।
धारा 9 की डिक्री का उपयोग क्या है और इसका उपयोग क्यों किया जाता है?
इसके पीछे दो मुख्य कारण है। पहला, अगर कोई पत्नी बिना किसी कारण से पति से अलग रह रही है तो वह अपने पति से मेंटेनेंस प्राप्त करने की हकदार नहीं है।
दूसरा कारण, यह है कि कोई भी पक्ष दाम्पत्य जीवन की पुनर्स्थापना की डिक्री का पालन नहीं कर रहा है तो उसके लिए तलाक का आधार हो सकता है।
धारा 9 हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत, जब दाम्पत्य जीवन की पुनर्स्थापना हेतु आदेश किसी एक पक्ष के पक्ष में जारी हो जाता है तो जिसके विरुद्ध जारी हुआ है, उसे उस आदेश की अनुपालना करना अनिवार्य होती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि पति के विरुद्ध धारा 9 हिन्दू मैरिज एक्ट के अंतर्गत डिक्री जारी हुई है और पति डिक्री की पालना नहीं करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है। परन्तु पत्नी के विरुद्ध धारा 9 हिन्दू मैरिज एक्ट के अंतर्गत आदेश पारित हुआ है तो उसे महिला होने के कारण जेल नहीं भेजा जाता।

Next Team Writer

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