
राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलन
- बैठ बेगार प्रथा
यह प्रथा बिजौलिया क्षेत्र में प्रचलित थी, जिसमें किसानों से जबरन मुफ्त में श्रम करवाया जाता था। यही प्रथा बिजौलिया किसान आंदोलन का प्रमुख कारण बनी। - बिजौलिया किसान आंदोलन
इस आंदोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया। आंदोलन की पृष्ठभूमि में भूमि कर, बेगार और अन्य अत्याचार शामिल थे। आंदोलन को संगठित रूप देने के लिए वीर भारत समाज सभा की स्थापना की गई। - कबीर पाठशाला और पुत्री पाठशाला
ये दोनों संस्थान चूरू में गोपाल दास द्वारा स्थापित की गई थीं। इनका उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक जागरूकता फैलाना था, खासकर किसानों और वंचित वर्गों में। - रावला-घड़साना किसान आंदोलन
यह आंदोलन श्रीगंगानगर जिले में हुआ। इसकी अगुवाई हेतराम बेनीवाल ने की। आंदोलन की जांच के लिए केजरीवाल आयोग गठित किया गया था। - तोल आंदोलन
यह आंदोलन जोधपुर में हुआ और इसका नेतृत्व चांद मल सुराना ने किया, जो मारवाड़ सेवा संघ से जुड़े थे। इसका उद्देश्य किसानों पर लगने वाले अन्यायपूर्ण तौल कर का विरोध था। - कांगड़ कांड
यह आंदोलन रतनगढ़ के कांगड़ा गांव में घटित हुआ, जहाँ किसानों पर अत्याचार के विरुद्ध विरोध हुआ था। - मेव किसान आंदोलन (1923)
यह आंदोलन अलवर और भरतपुर क्षेत्र में हुआ। मेव समुदाय के किसानों ने जमींदारी प्रथा और करों के खिलाफ संघर्ष किया। - बैंगु किसान आंदोलन
यह आंदोलन चित्तौड़गढ़ क्षेत्र में हुआ था। किसानों ने स्थानीय प्रशासन और ज़मींदारों के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई।
किसान आंदोलनों से जुड़े सामाजिक संगठन और संस्थाएं
- वीर भारत समाज सभा की स्थापना विजय सिंह पथिक ने की थी, जिसने किसान आंदोलनों को संगठित किया।
- उपरमाल पंच बोर्ड भी विजय सिंह पथिक के मार्गदर्शन में बना था, जिसका उद्देश्य किसानों की समस्याओं का समाधान करना था।
राजस्थान में प्रचलित कर और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ
- उद्रंग – यह भूमि कर था, जिसे राज्य द्वारा वसूला जाता था।
- साद प्रथा – यह मेवाड़ क्षेत्र में भूमि बंदोबस्त की एक परंपरा थी।
- मिसल – राज दरबार में पंक्ति में बैठने की एक रीति, जो दरबारी प्रथा से जुड़ी थी।
- गनीम बराड़ – मेवाड़ में लिया जाने वाला युद्ध कर।
- सिंगोटी – मवेशियों की बिक्री पर लगने वाला कर।
- मलबा और चौधर बाब – ये दोनों कर मेवाड़ क्षेत्र के किसानों से लिए जाते थे, जो अत्यधिक बोझ बन चुके थे।