
जब किसी पीड़ित पक्ष द्वारा कानून में निहित समयावधि में दावा/प्रार्थना पत्र/अपील आदि प्रस्तुत नहीं की जा सकी हो, तो उस स्थिति में मियाद बढ़ाने का क्या प्रावधान है?
इसके संबंध में धारा-5 मियाद अधिनियम में प्रावधान किया गया है। धारा-5 मियाद अधिनियम के अनुसार जो मियाद बताई गई है, वह मियाद जानकारी से शुरू हुई मानी जाती है।
अगर, कोई पक्षकार समयावधि में अपना दावा या प्रार्थना पत्र या अपील या अन्य कोई प्रार्थना पत्र समयावधि में पेश नहीं कर पाया तो वह व्यक्ति या पक्षकार न्यायालय के समक्ष अपना उचित व पर्याप्त कारण समयावधि में दावा या प्रार्थना पत्र या अपील प्रस्तुत नहीं कर पाने का दर्शित करेगा। तथा इस संबंध में अपना शपथ पत्र भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
धारा-5 मियाद अधिनियम के अंतर्गत हुई देरी का उचित व पर्याप्त कारण अगर न्यायालय सही एवं सत्य होना मानता है तो विलंब के लिए माफी दी जा सकती है और दावा/प्रार्थना पत्र/ अपील मियाद में माने जाने बाबत आदेश पारित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, किसी विक्रय पत्र को निरस्त करवाने बाबत मियाद कानून में 3वर्ष की होती है। परन्तु विक्रय पत्र की जानकारी पक्षकार को विक्रय पत्र होने के 2साल बाद होती है तो उस विक्रय पत्र निरस्त करवाने की मियाद विक्रय पत्र संपादित होने की जानकारी से 3 साल हो जाएगी।
इसी प्रकार, अगर किसी सिविल न्यायालय के निर्णय की अपील की मियाद 30 दिन की होती है। जिस व्यक्ति को निर्णय की अपील करनी है उस व्यक्ति ने समयावधि 30 दिन के भीतर निर्णय की नकल हेतु प्रार्थना पत्र पेश कर दिया है और उस व्यक्ति को नकल 30 दिन बाद प्राप्त होती है तो नकल मिलने से 30 दिन की अवधि मानी जायेगी।