
फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 का प्रभाव पूरे हिंदुस्तान में रहेगा। फैमिली कोर्ट में एक जज होगा जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय की सहमति से नियुक्त करेगी। फैमिली कोर्ट में एक परामर्शदाता और अन्य कर्मचारी भी रहेंगे, जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
कुटुंब न्यायालय ( फैमिली कोर्ट) किन मामलों में निर्णय लेने का अधिकारी है?
फैमिली कोर्ट की धारा 7 का अवलोकन करें तो यह स्थिति सामने आती है कि किसी विवाह के पक्षकारों के बीच विवाह को शून्य घोषित करवाने के लिए, दाम्पत्य जीवन की पुनर्स्थापना करने के लिए, तलाक की डिक्री के लिए या अन्य कोई विवाह से सम्बंधित कार्यवाही हो तो फैमिली कोर्ट में पेश की जा सकती है। इसके अलावा, किसी विवाह की विधि मान्यता के बारे में या उसकी वैवाहिक स्थिति के बारे में घोषणात्मक दावा भी फैमिली कोर्ट में किया जा सकता है।
किसी विवाह के पक्षकारों के बीच ऐसे पक्षकारों की या पत्नी पति के संपत्ति के बाबत विवाद हो तो वह विवाद भी फैमिली कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
विवाहित संबंध यानि शादी से सम्बंधित सभी प्रकार के विवाद में कोई आदेश लेना हो या कोई व्यादेश लेना है तो वह समस्त कार्यवाही फैमिली कोर्ट में होगी।
कोई संतान पक्षकारों का जायज पुत्र है या नाजायज पुत्र है, उसके बारे में घोषणा के संबंध में कार्यवाही फैमिली कोर्ट में की जा सकती है।
भरण- पोषण से संबंधित कार्यवाही भी फैमिली कोर्ट में होगी। किसी संतान की संरक्षकता किसे मिलेगी, इस सम्बंध में भी कार्यवाही फैमिली कोर्ट में होगी।
यानी सारांश रूप से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि पारिवारिक विवाद में सभी प्रकार के निर्णयों के लिए फैमिली कोर्ट के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है।
धारा 9 फैमिली कोर्ट अधिनियम के अनुसार, जहां मामले की प्रकृति और परिस्थितियों के अनुसार राजीनामा संभव है व इस संबंध में विषयवस्तु के बाबत किसी समझौते पर पहुंचने के लिए पक्षकारों की सहायता की जाए, या उन्हें मनाया जाए तो फैमिली कोर्ट उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों के अनुरुप प्रयास करेगा।
सबसे पहले फैमिली कोर्ट प्रयास करेगा कि दोनों पक्षकारों के मध्य राजीनामा हो।
धारा 11 के अनुसार, अगर कोई पक्षकार यह चाहता है कि हमारी सुनवाई बंद कमरे में की जाए, कोई भी एक पक्ष न्यायालय से अनुरोध करता है तो उन दोनों पक्षों की सुनवाई बंद न्यायालय में होगी और कोई तीसरा पक्ष जज, न्यायालय के स्टाफ के अलावा और कोई कक्ष में नहीं होगा।
फैमिली कोर्ट में एक वकील को अधिकार के रूप में पक्षकारों की पैरवी करने के लिए अधिकृत नहीं किया जाता है। कोई भी पक्षकार फैमिली न्यायालय में अपना न्याय मित्र नियुक्त कर सकता है और वह न्यायमित्र एक एडवोकेट भी हो सकता है। न्यायालय भी न्यायमित्र के रूप में वकील को पैरवी करने की इजाजत दे देता है।
फैमिली कोर्ट के किसी भी आदेश या निर्णय, अगर वह निर्णय या आदेश अंतरवर्तीय नहीं है तो आदेश व निर्णय की अपील उच्च न्यायालय में होगी।
फैमिली कोर्ट में कोई निर्णय दोनों पक्षों की सहमति से हुआ है तो उस निर्णय के विरुद्ध कोई पक्षकार अपील नहीं कर सकता।