NEXT 22 जून, 2025। सिर्फ अधिवक्ता होने के कारण ऋण देने से इनकार करना एक निजी फाइनेंस कंपनी को भारी पड़ गया। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग बीकानेर ने इसे सेवा में कमी मानते हुए कंपनी को मुआवजा देने का आदेश दिया है।
मामला अधिवक्ता गोपाल सिंह सोलंकी से जुड़ा है, जिन्होंने चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी में ऋण के लिए आवेदन किया था। लेकिन कंपनी ने यह कहते हुए आवेदन अस्वीकार कर दिया कि वे अधिवक्ता हैं। इस पर सोलंकी ने उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर किया।
आयोग अध्यक्ष नरसिंहदास व्यास, सदस्य ओम प्रकाश और सावित्री सुथार की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अधिवक्ता समाज का बुद्धिजीवी वर्ग है और उन्हें सिर्फ उनके पेशे के कारण ऋण से वंचित करना पूरी तरह गलत है। आयोग ने इसे पूर्वाग्रहपूर्ण निर्णय बताया और कहा कि किसी भी अधिकारी को दिए गए अधिकारों का प्रयोग स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।
यह कहा आयोग ने…
“विवेकाधिकार का मतलब यह नहीं कि अधिकारी निरंकुश होकर काम करें। ऐसे निर्णयों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में कोई ऐसा दुस्साहस न करे।”
आयोग का आदेश:
- ₹5500 प्रोसेसिंग फीस 9% वार्षिक ब्याज सहित लौटाने के आदेश
- मानसिक पीड़ा के लिए ₹10,000
- परिवाद व्यय ₹10,000 अतिरिक्त देने होंगे
परिवादी की ओर से अधिवक्ता हनुमान सिंह पडिहार और गोपाल सिंह सोलंकी ने स्वयं पैरवी की।