आज हम चर्चा कर रहे हैं एडवोकेट दीपिका करनाणी से, जो हमें समझा रही हैं कि न्यायालय में झूठी या मिथ्या गवाही देना कितना गंभीर अपराध है और इसके क्या कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
क्या होता है झूठी गवाही देना?
जब कोई व्यक्ति अदालत के समक्ष जानबूझकर झूठ बोलता है या ऐसे तथ्य पेश करता है जो सच नहीं होते, तो इसे झूठी गवाही या मिथ्या साक्ष्य कहा जाता है। यह न केवल न्याय प्रक्रिया को भटकाता है, बल्कि आरोपी या पीड़ित दोनों के लिए अन्याय का कारण बन सकता है।
कानून क्या कहता है?
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNS) की धारा 383
यह धारा CrPC की धारा 344 का ही आधुनिक रूप है, जो नये कानून के तहत झूठी गवाही देने वालों पर सख्त रुख अपनाने की व्यवस्था करती है।
यदि कोई सेशन न्यायालय या प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट किसी मामले का फैसला सुनाते समय यह पाता है कि किसी गवाह ने जानबूझकर झूठ बोला है, तो वह उस गवाह के खिलाफ सीधे कार्रवाई कर सकता है।- पहले उस व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस दिया जाएगा।
- दोषी पाए जाने पर उसे 3 महीने तक की जेल और जुर्माना दोनों की सजा दी जा सकती है।
- ध्यान रहे, यह कार्रवाई गवाही के समय नहीं, बल्कि निर्णय सुनाते समय ही की जा सकती है।
- BNS की धारा 229
यह भी स्पष्ट करती है कि अदालत में झूठी गवाही देना एक अपराध है, और इसके लिए उचित दंड का प्रावधान किया गया है।
क्यों है यह जरूरी?
कानून की नजर में अदालत एक पवित्र मंच है, जहां सिर्फ और सिर्फ सच की जगह होती है। यदि गवाह झूठ बोलेंगे, तो न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा। यही वजह है कि कानून इस मामले में बेहद सख्त है।
निष्कर्ष
अगर आप अदालत में गवाही दे रहे हैं, तो यह ध्यान रखें कि आपका हर शब्द जिम्मेदारी भरा होना चाहिए। झूठ बोलना सिर्फ एक नैतिक गलती नहीं, बल्कि कानूनी अपराध भी है – जिसके लिए आपको जेल भी हो सकती है। इसलिए, सच बोलें और न्याय की प्रक्रिया को मजबूत बनाएं।