NEXT 24 अगस्त, 2025 श्रीडूंगरगढ़। राजस्थानी रामलीला के लेखक और राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन के प्रखर कार्यकर्ता मनोज स्वामी को रविवार को श्रीडूंगरगढ़ में गुणीजन सम्मान समारोह समिति की ओर से राजस्थानी साहित्य भूषण सम्मान दिया गया।

समारोह में उन्हें एक लाख रुपए नकद, शॉल, श्रीफल और प्रशस्ति-पत्र भेंट किए गए। बरखा की रिमझिम के बीच आयोजित इस कार्यक्रम में नगर के अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे।
“राजनेताओं की इच्छा शक्ति चूक गई है”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्याम महर्षि ने कहा कि “भाषा के मामले में राजस्थान अपने पहले मुख्यमंत्री की भूल की सजा भुगत रहा है। आजादी के 75 साल बाद भी राजस्थानी को मान्यता नहीं मिली। राजनेताओं की इच्छा शक्ति चूक गई है। अगर मुख्यमंत्री चाहें तो कुछ ही दिनों में राजस्थानी को राजभाषा बना सकते हैं।”
“भाषा मरेगी तो संस्कृति भी मर जाएगी”
समिति अध्यक्ष लॉयन महावीर माली ने कहा कि “भाषा एक दर्पण है जिसमें संस्कृति का चेहरा दिखता है। भाषा मरते ही संस्कृति और परंपराएं भी खत्म हो जाएंगी। नेताओं को बाध्य किया जाए कि वे अपनी घोषणाएं और भाषण राजस्थानी में करें।”
“जनगणना में मातृभाषा राजस्थानी दर्ज करवाना न भूलें”
सम्मानित साहित्यकार मनोज स्वामी ने कहा कि “आज हर राजस्थानी की सबसे बड़ी लड़ाई भाषा की है। हमें आगामी जनगणना में अपनी मातृभाषा राजस्थानी दर्ज करवाना नहीं भूलना चाहिए। हम जमीनी स्तर पर भाषा आंदोलनकारी तैयार कर रहे हैं।”
विद्वानों ने रखे विचार
- डॉ. मदन सैनी ने कहा कि सरकार ऐसे दिखा रही है जैसे भाषा आंदोलन से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
- कथाकार सत्यदीप ने कहा कि हमें राजनेताओं को बाध्य करना होगा कि वे भाषा की बात करें और भाषा में ही बात करें।
- युवा साहित्यकार गौरीशंकर निमिवाल ने कहा कि गांव-कस्बों के युवाओं को भाषा आंदोलन से जोड़ना जरूरी है।
- मुरलीधर उपाध्याय ने कहा कि मान्यता और राजभाषा लागू करने के लिए हर परिवार को जुटना होगा।
- कार्यक्रम संयोजक डॉ. चेतन स्वामी ने कहा कि भौतिक स्वतंत्रता से ज्यादा कठिन है भाषा की स्वतंत्रता।
