NEXT 2 मई, 2025। राजस्थान में अब पढ़ाई से वंचित रहने वाले बच्चों तक स्कूल खुद पहुंचेगा। शिक्षा विभाग ने ड्रॉपआउट बच्चों की संख्या कम करने और घुमंतू व प्रवासी मजदूरों के बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए नया नवाचार किया है। इसके तहत राज्यभर में चलते-फिरते स्कूल शुरू किए जाएंगे। इन स्कूलों को बसों में बनाया जाएगा, जो पूरी तरह डिजिटल और आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे।

पहले चरण में हर जिले को दो चलते-फिरते स्कूल दिए जाएंगे। यानी पूरे राज्य में करीब 100 मोबाइल स्कूल बसें तैयार होंगी। इनमें एलकेजी से 5वीं क्लास तक की पढ़ाई होगी। एक स्कूल में 15 से 24 बच्चों के लिए जगह होगी। जरूरत बढ़ने पर स्थायी स्कूल खोलने का भी प्रस्ताव रखा जाएगा।
डिजिटल ब्लैक बोर्ड से पढ़ेंगे बच्चे, खेल सामग्री भी होगी
हर बस में एलईडी टीवी, प्रोजेक्टर, डिजिटल ब्लैक बोर्ड, कम्प्यूटर, लाइब्रेरी और खेल सामग्री उपलब्ध करवाई जाएगी। शिक्षा विभाग इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के मॉडल को देखकर डिज़ाइन तैयार करवा रहा है। एक चलते-फिरते स्कूल की लागत करीब 1 करोड़ रुपये तय की गई है। इसके लिए प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा गया है।
घुमंतू और प्रवासी परिवारों के बच्चों को होगा सीधा फायदा
शिक्षा विभाग के सचिव कृष्ण कुणाल के अनुसार, शुरुआत उन इलाकों से की जाएगी, जहां घुमंतू जातियों और प्रवासी मजदूरों की संख्या ज्यादा है। ऐसे परिवार मौसम और काम के हिसाब से जगह बदलते रहते हैं, जिससे बच्चे पढ़ाई से छूट जाते हैं। इन स्कूलों से वे पढ़ाई में वापस जुड़ सकेंगे।

जहां स्थायी स्कूल नहीं हैं और बच्चों की संख्या ज्यादा है, वहां भी ये मोबाइल स्कूल भेजे जाएंगे। हर स्कूल में स्थानीय शिक्षक लगाए जाएंगे, जिन्हें स्थानीय भाषा का ज्ञान होगा। इससे पढ़ाई में रुचि भी बढ़ेगी और समझ भी आसान होगी।
राइजिंग राजस्थान में मिला आइडिया, प्रवासी ने दिया सुझाव
यह आइडिया हाल ही में जयपुर में हुए राइजिंग राजस्थान कार्यक्रम में सामने आया, जब इंग्लैंड से आए एक प्रवासी उद्यमी ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को यह सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि इंग्लैंड में इस तरह के स्कूल एनजीओ चला रहे हैं और बच्चों को बड़ी संख्या में फायदा हो रहा है।
1992 में भी चले थे मोबाइल स्कूल, अब हाईटेक बनकर लौटे
इससे पहले 1992-94 के बीच भी मोबाइल स्कूल का प्रयोग हुआ था, लेकिन तब शिक्षक साइकिल या मोटरसाइकिल से गांव-गांव जाकर पेड़ के नीचे पढ़ाते थे। अब समय बदल गया है, तो स्कूल भी हाईटेक होकर गांवों तक पहुंचेंगे।

शुरुआत अगले सत्र से, पहले मरुस्थलीय जिलों को मिलेगी प्राथमिकता
टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के 6 महीने में स्कूल तैयार कर जिलों को सौंप दिए जाएंगे। पहले चरण में जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, कोटा, भरतपुर और उदयपुर संभाग के चयनित क्षेत्रों में इन्हें भेजा जाएगा।
सरकार का लक्ष्य है – “कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।”