NEXT 6 मार्च, 2025। किसान की मेहनत और प्रकृति का खेल हमेशा साथ-साथ चलता है। कभी सूखा, कभी ओलावृष्टि, कभी अतिवृष्टि तो कभी कीट और रोग। हर बार नई चुनौती किसानों के सामने खड़ी हो जाती है। हाल ही में बीकानेर संभाग के कई जिलों में ओलावृष्टि ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया, लेकिन श्रीडूंगरगढ़ अंचल में हुई अच्छी बरसात ने फसलों को जीवनदान दे दिया। इस बारिश से गेहूं, जौ, सरसों, ईसबगोल और जीरा की फसलें लहलहा उठीं।

हालांकि, बारिश के बाद तेलिया रोग ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। सातलेरा गांव के किसान रामचंद्र मेघवाल ने बताया कि ईसबगोल की फसल पर तेलिया रोग का प्रकोप अधिक देखने को मिल रहा है। किसान कृषि विशेषज्ञों द्वारा बताए गए उपायों के अनुसार दवा का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।

क्या है तेलिया रोग?
तेलिया रोग दो प्रकार का होता है काला और सफेद। यह एक बारीक मच्छर के आकार का सूक्ष्म कीट होता है, जो पौधों की पत्तियों और तनों से चिपक जाता है। यह पौधों के विकास को प्रभावित करता है और फलियों को नुकसान पहुंचाकर पैदावार घटा देता है।
क्या हैं बचाव के उपाय?
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, तेलिया रोग से बचाव के लिए जैविक और रासायनिक दोनों तरह के उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- नीम तेल का छिड़काव: प्रति लीटर पानी में 5 मिलीलीटर नीम तेल मिलाकर छिड़काव करें।
- लहसुन-मिर्च का घोल: इसका छिड़काव करने से कीटों का प्रभाव कम होता है।
- फसल चक्र अपनाएं: हर साल एक ही फसल उगाने से रोग बढ़ता है, इसलिए फसल चक्र अपनाना जरूरी है।
- रासायनिक उपाय: कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार सल्फर या अन्य कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।