NEXT 16 जनवरी, 2025। सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के तहत मौजूदा सरपंचों को ही ग्राम पंचायतों का प्रशासक नियुक्त कर एक बड़ा कदम उठाया है। इससे पंचायत स्तर पर प्रशासनिक कामकाज की निरंतरता तो सुनिश्चित हुई है, लेकिन राजनीतिक चुनौतियां अभी भी जस की तस बनी हुई हैं।
सरपंचों का कार्यकाल बढ़ाने पर असंतोष
पंचायतों में मौजूदा सरपंचों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। ऐसे में उन्हें प्रशासक बनाकर उनके कार्यकाल को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ाने का यह निर्णय विरोधी गुटों के लिए असंतोष का कारण बन सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हर पंचायत में दो से तीन राजनीतिक गुट सक्रिय होते हैं। ऐसे में सरपंच-विरोधी खेमा इस फैसले को लेकर नाराज हो सकता है।
प्रशासक नियुक्ति की समय सीमा तय नहीं
सरपंचों को प्रशासक बनाए रखने की अवधि को लेकर कोई स्पष्ट समय सीमा तय नहीं की गई है। जब तक पंचायत चुनाव की घोषणा नहीं होती, तब तक सरपंच प्रशासक के रूप में काम करते रहेंगे।
“वन स्टेट वन इलेक्शन” की तैयारी में चुनाव टाले गए
राज्य में “वन स्टेट वन इलेक्शन” नीति के तहत सभी पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की योजना है। प्रदेश में 11,000 से अधिक पंचायतें हैं, जिनका कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त हो रहा है।
जनवरी में 6,759 पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो रहा है।
मार्च में 704 पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होगा।
सितंबर-अक्टूबर तक 3,847 पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो जाएगा।
इन सभी चुनावों को एक साथ कराने के लिए सरकार ने चुनाव टालकर प्रशासक नियुक्त करने का फैसला लिया है।
नया मॉडल अपनाया गया
अब तक ग्राम सचिवों को प्रशासक नियुक्त किया जाता था, लेकिन इस बार मौजूदा सरपंचों को यह जिम्मेदारी दी गई है। इसके साथ ही एक प्रशासनिक समिति बनाई गई है, जिसमें उप सरपंच और वार्ड पंच भी शामिल होंगे। इस मॉडल का उद्देश्य स्थानीय नाराजगी को कम करना और प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखना है।
चुनौतियां बरकरार
सरकार ने प्रशासकों की नियुक्ति से तात्कालिक समाधान तो निकाला है, लेकिन सरपंच-विरोधी गुटों और गांव की राजनीतिक गुटबाजी को देखते हुए यह साफ है कि सियासी चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं।
सरपंचों को प्रशासक बनाकर सरकार ने संतुलन साधा, पर सियासी चुनौतियां बरकरार, समय सीमा तय नहीं

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