NEXT 4 नवम्बर, 2025 श्रीडूंगरगढ़। राजस्थान हाईकोर्ट ने मृतक डिस्ट्रिक्ट जज बीडी सारस्वत की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जांच रिपोर्ट गलत साक्ष्यों पर आधारित थी। इसके साथ ही फुल कोर्ट की सिफारिश और राज्यपाल के आदेश को भी निरस्त कर दिया गया।
जस्टिस मुजूरी लक्ष्मण और जस्टिस बिपिन गुप्ता की डिवीजन बेंच ने 3 नवंबर 2025 को यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि बीडी सारस्वत के पास वैधानिक जमानत देने के अलावा कोई विवेक नहीं था। इसलिए उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई गलत थी।
कोर्ट ने आदेश दिया कि बर्खास्तगी की तारीख 8 अप्रैल 2010 से लेकर रिटायरमेंट की तारीख 28 फरवरी 2011 तक का पूरा वेतन और सभी पेंशन लाभ परिवार को दिए जाएं। साथ ही मृतक जज को “काल्पनिक रूप से बहाल” माना जाएगा।
15 साल बाद आया फैसला, परिवार ने लड़ी कानूनी लड़ाई
बीडी सारस्वत प्रतापगढ़ में एनडीपीएस एक्ट के विशेष न्यायालय में स्पेशल जज थे। साल 2004-05 में एक आरोपी पारस को जमानत देने पर उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी। आरोप था कि उन्होंने अवैध उद्देश्यों से तीसरी जमानत याचिका मंजूर की थी।
मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर जांच शुरू हुई थी। जस्टिस एनपी गुप्ता की रिपोर्ट में सारस्वत को दोषी ठहराया गया। फुल कोर्ट ने 2010 में बर्खास्तगी की सिफारिश की, जिस पर राज्यपाल ने मुहर लगा दी।
सारस्वत की 26 मई 2012 को मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी, बेटी मधु सारस्वत और बेटे अमित सारस्वत (बीकानेर के जय नारायण व्यास कॉलोनी निवासी) ने केस आगे बढ़ाया।
हाईकोर्ट ने कहा- जांच अधिकारी ने गलत साक्ष्यों पर भरोसा किया
कोर्ट ने कहा कि आरोपी पारस के खिलाफ मामला 1.5 किलो अफीम बरामदगी का था, जो मध्यवर्ती श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में अधिकतम सजा 10 साल तक की होती है।
सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत 10 साल तक की सजा वाले अपराधों में 90 दिन की हिरासत के बाद चार्जशीट दाखिल नहीं होती तो आरोपी को “वैधानिक जमानत” का अधिकार होता है।
तीसरी जमानत याचिका ऐसे ही वैधानिक आधार पर दायर हुई थी। उस समय आरोपी 157 दिन से जेल में था और चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी। इसलिए जमानत देना कानूनन सही था।
बेंच ने कहा कि जांच अधिकारी ने अन्य मामलों रमेश और अयूब की जमानत के आदेशों को भी आधार बनाया, जबकि वे आरोप का हिस्सा ही नहीं थे।
सुनवाई का मौका दिए बिना की गई सिफारिश
वरिष्ठ अधिवक्ता एम.एस. सिंघवी ने याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी कि बीडी सारस्वत ने 5 फरवरी 2010 को जवाब दिया था, लेकिन फुल कोर्ट ने इससे पहले ही 2 फरवरी को बर्खास्तगी की सिफारिश कर दी।
कोर्ट ने माना कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था, क्योंकि याचिकाकर्ता को सुनवाई का पूरा मौका नहीं मिला।
अब क्या होगा
हाईकोर्ट ने कहा कि बीडी सारस्वत की बर्खास्तगी रद्द मानी जाएगी।
राज्य सरकार को आदेश दिया गया है कि उनके परिवार को रिटायरमेंट तक का पूरा वेतन, पेंशन और अन्य सभी सेवा लाभ दिए जाएं।















