यूडीएच मंत्री बोले- कर्मचारियों को मिली राहत, जनप्रतिनिधियों से भेदभाव नहीं होना चाहिए
NEXT 31 अक्टूबर, 2025 श्रीडूंगरगढ़। राजस्थान में पंचायत और निकाय चुनावों में दो बच्चों की बाध्यता हटाई जा सकती है। सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। विभिन्न संगठनों, नेताओं और जनप्रतिनिधियों की ओर से लगातार उठ रही मांग के बाद पंचायतीराज और स्वायत्त शासन विभाग से अनौपचारिक रिपोर्ट मांगी गई है।
फिलहाल कानून के तहत जिनके दो से ज्यादा बच्चे हैं, वे पंचायत और नगर निकाय के चुनाव नहीं लड़ सकते।
मंत्री बोले- “कर्मचारियों को छूट दी गई, जनप्रतिनिधियों को भी मिलनी चाहिए”
यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि-
“जब सरकारी कर्मचारियों पर तीन संतान का प्रतिबंध लगा था, उसमें राहत दे दी गई। फिर जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव क्यों? उनको भी उतनी छूट तो मिलनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि यह मामला मुख्यमंत्री स्तर पर भी चर्चा में आया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि पहले सभी पक्षों से राय ली जाए। उसके बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
जनसंख्या नियंत्रण जरूरी, लेकिन भेदभाव नहीं: मंत्री
मंत्री ने कहा कि-
“देश और राज्य के हित में जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है। लेकिन जब कर्मचारियों को दो बच्चों के नियम में छूट दी गई है, तो जनप्रतिनिधियों को अलग मानदंड में नहीं रखा जा सकता।”
उन्होंने कहा कि मांग लगातार उठ रही है, इसलिए सरकार इसे गंभीरता से देख रही है।
मौजूदा प्रावधान क्या हैं?
- 1995 में सरकार ने पंचायतीराज और नगरपालिका कानूनों में संशोधन किया था।
- 27 नवंबर 1995 के बाद जिनके तीन या अधिक बच्चे हैं, वे चुनाव नहीं लड़ सकते।
- इसमें पंच, सरपंच, उपसरपंच, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य, प्रधान, पार्षद, सभापति और मेयर शामिल हैं।
- अगर किसी ने गलत जानकारी देकर चुनाव लड़ लिया और बाद में साबित हो गया, तो पद छिन सकता है और जेल भी हो सकती है।
- जुड़वां बच्चों को एक ही इकाई माना जाता है।
- गोद दिए गए बच्चे को भी गिना जाएगा।
1994-95 में भैरोंसिंह सरकार में बनी थी रोक
तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की सरकार ने राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 में दो से ज्यादा संतान वाले जनप्रतिनिधियों पर रोक लगाई थी।
अगर चुनाव जीतने के बाद तीसरा बच्चा होता है, तो पद से हटाने का भी प्रावधान था। तब से अब तक इस नियम में कोई शिथिलता नहीं दी गई है।
कर्मचारियों को मिल चुकी है राहत
- साल 2002 में सरकारी नौकरी पाने और पदोन्नति पर भी दो बच्चों की शर्त लागू की गई थी।
- बाद में 2018 में वसुंधरा सरकार ने यह नियम खत्म करने की घोषणा की।
- अब कर्मचारियों के लिए तीसरी संतान पर प्रमोशन की रोक भी 3 साल तक सीमित कर दी गई है।
- इसलिए अब पंचायत व निकाय प्रतिनिधि इस “भेदभाव” को हटाने की मांग कर रहे हैं।
विधानसभा में भी उठा मुद्दा
इस साल बजट सत्र में चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह ने सवाल उठाया था कि जब विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यह पाबंदी नहीं है, तो पंचायत चुनावों में क्यों?
संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल ने कहा था कि मामला गंभीर है, सरकार इस पर विचार कर रही है।
इससे पहले 2019 में कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने भी यह नियम हटाने की मांग की थी।
अब आगे क्या?
सरकार ने फिलहाल सभी पक्षों से राय लेने का फैसला किया है।
अधिकारियों से रिपोर्ट मंगवाई जा चुकी है।
संकेत यही हैं कि अगर सभी पक्ष सहमत रहे, तो जल्द ही दो बच्चों की बाध्यता में शिथिलता या पूर्ण छूट दी जा सकती है।















