डर मुझे भी लगा फासला देख कर,
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर।
खुद ब खुद मेरे नजदीक आती गई,
मेरी मंजिल मेरा हौंसला देख कर।।
यह कहानी है विक्रम सिंह की, जो श्रीडूंगरगढ़ शहर के युवा नेता और प्रेरणास्त्रोत हैं। विक्रम ने अपनी मेहनत और कड़ी लगन से अपनी जिंदगी में कई क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की, चाहे वह राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक क्षेत्र हो। वे न केवल एक प्रभावशाली नेता है, बल्कि उनके सौम्य और मिलनसार व्यवहार के कारण लोग उन्हें पसंद करते हैं।
लेकिन 22 नवंबर 2018 को एक सड़क दुर्घटना ने उनकी जिंदगी का रुख बदल दिया। इस हादसे में विक्रमसिंह की रीढ़ की हड्डी टूट गई, जिससे उनके शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और एक पैर पैरालाइज हो गया। उस समय सबने मान लिया था कि विक्रम अब कभी अपनी मदद से खड़े नहीं हो पाएंगे और उनका करियर खत्म हो चुका है।

हालांकि, विक्रम सिंह ने हार नहीं मानी। तीन महीने तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद, उन्होंने दृढ़ इच्छाशक्ति और अपने परिवार व मित्रों के सहयोग से फिर से खड़ा होने की ठानी। विक्रम सिंह ने खुद को साबित किया कि शारीरिक दुर्बलता किसी के लक्ष्य की राह में आड़े नहीं आ सकती। उनकी कड़ी मेहनत और मानसिक ताकत ने उन्हें फिर से अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।

विक्रम सिंह कहते हैं कि जीवन में हालात चाहे जैसे भी हों, हमें अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए, व्यक्ति को मुश्किलों का सामना और सम्मान करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कई लोगों ने उन्हें लाचार समझा और उनसे दूरियां बना लीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। उनके संघर्ष और आत्मविश्वास ने उन्हें एक प्रेरणा बना दिया, जो दूसरों को भी कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।

पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादें को,
उसके मुक्कद्दर के सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नही होते।
आज विक्रम सिंह की कहानी एक मिसाल है, जो यह सिद्ध करती है कि अगर मन में ठान लिया जाए तो कोई भी मुश्किल इंसान को उसकी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। विक्रमसिंह वर्तमान में केंद्रीय कानून मंत्री के निजी सहायक है और मोटिवेशनल स्पीकर है।