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स्टे (अस्थायी निषेधाज्ञा) क्या होता है? आओ जाने NEXT के साथ

By Next Team Writer

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अस्थायी निषेधाज्ञा (स्टे) की परिभाषा

अस्थायी निषेधाज्ञा (स्टे) एक कानूनी आदेश है, जिसके तहत किसी विवादित कार्य या स्थिति को न्यायालय के अंतिम निर्णय तक रोका जाता है। यह आदेश आमतौर पर न्यायिक प्रक्रिया के दौरान किसी पक्ष को होने वाले संभावित नुकसान को टालने के लिए दिया जाता है। स्टे आदेश संपत्ति, अनुबंध या अन्य विवादित मामलों में दिया जा सकता है। इसका उद्देश्य वाद की विषयवस्तु को सुरक्षित बनाए रखना और अनावश्यक क्षति से बचाव करना होता है।

स्टे जारी करने के आधार

न्यायालय कुछ आधारों पर स्टे जारी कर सकता है, जैसे:

  1. संपत्ति के दुरुपयोग या नुकसान की संभावना – जब किसी दावे में विवादग्रस्त संपत्ति का कोई पक्षकार दुरुपयोग कर सकता है, उसे नुकसान पहुंचा सकता है, खुर्द-बुर्द कर सकता है या अन्य किसी प्रकार से हस्तांतरित कर सकता है।
  2. कपटपूर्वक हस्तांतरण का आशय – जब प्रतिवादी अपने लेनदारों को धोखा देने के लिए संपत्ति को स्थानांतरित करने की योजना बना रहा हो।
  3. अनधिकृत कब्जा या बेदखली का खतरा – यदि प्रतिवादी, वादी को विवादग्रस्त संपत्ति से बेदखल करने की धमकी देता है या उस पर अनधिकृत कब्जा करने का प्रयास करता है।
  4. नुकसान पहुंचाने की धमकी – यदि किसी पक्ष द्वारा संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या किसी प्रकार की हानि पहुंचाने की आशंका हो।

इन परिस्थितियों में न्यायालय आदेश 39 नियम 1 और 2 के तहत स्टे आदेश जारी कर सकता है

स्टे आदेश की शर्तें और प्रावधान

  • न्यायालय अपने आदेश में यह कह सकता है कि कोई भी पक्ष संपत्ति को हस्तांतरित न करे, उसे नुकसान न पहुंचाए और किसी भी प्रकार से स्थिति में परिवर्तन न करे
  • यह आदेश मुकदमे के दौरान प्रभावी रहेगा।
  • आदेश 39 नियम 2-क के तहत, यदि कोई पक्ष स्टे आदेश का उल्लंघन करता है, तो उसकी संपत्ति कुर्क की जा सकती है और उसे 3 माह तक के लिए सिविल कारावास की सजा हो सकती है।
  • आदेश 39 नियम 3 में यह प्रावधान है कि स्टे आदेश जारी करने से पहले न्यायालय विपक्षी पक्षकार को सूचना देगा।
  • आपातकालीन स्थिति में बिना सूचना के भी स्टे दिया जा सकता है।

एकतरफा स्टे आदेश और उसकी पुष्टि

  • यदि एकतरफा रूप से स्टे जारी किया गया है, तो न्यायालय को आदेश जारी होने के 30 दिन के भीतर-भीतर उसे पुष्टि या निरस्त करना होगा
  • आदेश 39 नियम 4 के अनुसार, यदि किसी पक्ष को स्टे आदेश पर आपत्ति है, तो वह न्यायालय में आवेदन दे सकता है, और न्यायालय पहले दिए गए आदेश को रद्द या संशोधित कर सकता है।

न्यायालय द्वारा मौका रिपोर्ट और कमिश्नर की नियुक्ति

  • आदेश 39 नियम 7 के तहत, न्यायालय वाद की विषय-वस्तु या संपत्ति की स्थिति का निरीक्षण करवाने के लिए मौका रिपोर्ट मंगवा सकता है।
  • इस कार्य के लिए न्यायालय एक मौका कमिश्नर नियुक्त करता है, जो प्रायः न्यायालय का कोई एडवोकेट होता है।
  • मौका कमिश्नर द्वारा दी गई रिपोर्ट न्यायालय में साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होती है।

स्टे आदेश जारी करने के लिए तीन आवश्यक सिद्धांत

न्यायालय स्टे जारी करने के लिए निम्नलिखित तीन सिद्धांतों को देखता है:

  1. प्रथम दृष्टया मामला (Prima Facie Case) – स्टे प्राप्त करने वाले पक्ष के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला होना चाहिए।
  2. सुविधा का संतुलन (Balance of Convenience) – स्टे प्राप्त करने वाले पक्ष के लिए अधिक असुविधा न हो और वह नुकसान से बच सके।
  3. अपूर्तिक क्षति (Irreparable Loss) – यदि स्टे नहीं दिया गया, तो वह व्यक्ति ऐसा नुकसान झेलेगा जिसकी भरपाई संभव नहीं होगी।

हितों की सुरक्षा और अनावश्यक क्षति से बचाने के लिए स्टे

स्टे आदेश एक महत्त्वपूर्ण कानूनी उपाय है, जो यह सुनिश्चित करता है कि मुकदमे के दौरान विवादग्रस्त संपत्ति या स्थिति में कोई अनुचित परिवर्तन न हो। न्यायालय द्वारा स्टे जारी करने के लिए कुछ कानूनी सिद्धांतों और प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है। यदि कोई पक्ष स्टे आदेश का उल्लंघन करता है, तो उसे दंडित भी किया जा सकता है।

इस प्रकार, अस्थायी निषेधाज्ञा (स्टे) न्याय व्यवस्था में पक्षकार के हित को सुरक्षित बनाए रखने और किसी भी पक्ष को अनावश्यक क्षति से बचाने के लिए एक प्रभावी उपाय है।

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